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प्राकृतिक खेती

किसानों के लिए जैविक खेती करना बेहद फायदेमंद, जैविक उत्पादों की बढ़ रही मांग

किसानों के लिए जैविक खेती करना बेहद फायदेमंद, जैविक उत्पादों की बढ़ रही मांग

जैविक खेती से कैंसर दिल और दिमाग की खतरनाक बीमारियों से लड़ने में भी सहायता मिलती है। प्रतिदिन कसरत और व्यायाम के साथ प्राकृतिक सब्जी और फलों का आहार आपके जीवन में बहार ला सकता है।

ऑर्गेनिक फार्मिंग मतलब जैविक खेती को पर्यावरण का संरक्षक माना जाता है। कोरोना महामारी के बाद से लोगों में स्वास्थ्य के प्रति काफी ज्यादा जागरुकता पैदा हुई है। बुद्धिजीवी वर्ग खाने पीने में रासायनिक खाद्य से उगाई सब्जी के स्थान पर जैविक खेती से उगाई सब्जियों को प्राथमिकता दे रहा है।

बीते 4 वर्षों में दो गुना से ज्यादा उत्पादन हुआ है

भारत में विगत चार वर्षों से जैविक खेती का क्षेत्रफल यानी रकबा बढ़ रहा है और दोगुने से भी ज्यादा हो गया है। 2019-20 में रकबा 29.41 लाख हेक्टेयर था, 2020-21 में यह बढ़कर 38.19 लाख हेक्टेयर हो गया और पिछले साल 2021-22 में यह 59.12 लाख हेक्टेयर था।

कई गंभीर बीमारियों से लड़ने में बेहद सहायक

प्राकृतिक कीटनाशकों पर आधारित जैविक खेती से कैंसर और दिल दिमाग की खतरनाक बीमारियों से लड़ने में भी मदद मिलती है। प्रतिदिन कसरत और व्यायाम के साथ प्राकृतिक सब्जी और फलों का आहार आपके जीवन में शानदार बहार ला सकता है।

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भारत की धाक संपूर्ण वैश्विक बाजार में है 

जैविक खेती के वैश्विक बाजार में भारत तेजी से अपनी धाक जमा रहा है। इतनी ज्यादा मांग है कि सप्लाई पूरी नहीं हो पाती है। आने वाले वर्षों में जैविक खेती के क्षेत्र में निश्चित तौर पर काफी ज्यादा संभावनाएं हैं। सभी लोग अपने स्वास्थ को लेकर जागरुक हो रहे हैं। 

जैविक खेती इस प्रकार शुरु करें 

सामान्य तौर पर लोग सवाल पूछते हैं, कि जैविक खेती कैसे आरंभ करें ? जैविक खेती के लिए सबसे पहले आप जहां खेती करना चाहते हैं। वहां की मिट्टी को समझें। ऑर्गेनिक खेती शुरू करने से पहले किसान इसका प्रशिक्षण लेकर शुरुआत करें तो चुनौतियों को काफी कम किया जा सकता है। किसान को बाजार की डिमांड को समझते हुए फसल का चयन करना है, कि वह कौन सी फसल उगाए। इसके लिए किसान अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञों से मशवरा और राय अवश्य ले लें।

उत्तर प्रदेश में प्राकृतिक खेती के लिए राष्ट्रीय गठबंधन की शुरुआत

उत्तर प्रदेश में प्राकृतिक खेती के लिए राष्ट्रीय गठबंधन की शुरुआत

प्राकृतिक खेती के लिए राष्ट्रीय गठबंधन के उत्तर प्रदेश के अध्याय की उत्तर प्रदेश के बांदा में किसान प्रेम जी की बगिया में बैठक से शुरूआत हुई। यह एक राष्ट्रीय स्तर का नेटवर्क है जो सैकडों संस्थाओं और अलग-अलग राज्य सरकारों के साथ प्राकृतिक/जैविक खेती पर काम कर रहा है। इस शुरुआती बैठक में राज्य में 30 से अधिक लोग एवं विभिन्न जनपदों की तकरीबन 20 संस्थाओं ने भाग लिया। बैठक की शुरूआत में आंध्र प्रदेश से स्वाति ने कहा कि यह प्राकृतिक खेती के लिए विश्व में सबसे बड़ा अभियान है। कहा कि प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को सक्षम बनाना होगा। उन्होंन यह भी कहा कि जैव इनपुट संसाधन केन्द्र के माध्यम से सामुदायिक स्तर पर कीटनाशकों और रासायनिक खादों के विकल्पों को बड़े पैमाने पर बनाया जा सकता है। बैठक में सभी संस्थाओं ने अपने काम का विवरण दिया और काम में आने वाली चुनौतियों और राज्य में प्राकृतिक खेती को आगे बढ़ाने  की संभावनाओं के बारे में सुझाव व्यक्त किए। इनमें श्रमिक भारती कानपुर, हरतिका छत्तरपुर, आगा खान फाउण्डेशन बहराइच, नवभारत समाज कल्याण समिति मुरादाबाद, सर सईद ट्रस्ट आयोध्या, युवा कौशल विकास मण्डल हमीरपुर, वनवासी सेवा आश्रम सोनभद्र, अखिल भारतीय समाज सेवा संस्था चित्रकूट, जीवा फाउण्डेशन बांदा, ग्रामोन्नति संस्था महोबा, अरुणोदय संस्थान, सम्मीपुुर नेचर फॉर्मिंग आदि प्रमुख थीं। अंतिम सत्र में अगले चार माह के लिए साझे कार्यक्रम तय हुए। इसमें प्राकृतिक खेती के लिए वातावरण तैयार किया जाए। प्राकृतिक खेती के लिए काम करने वाली संस्थाओं को आपस में जोड़ना। साझी समझ विकसित करने के लिए एक माह में चार चार दिवसीय शिविर आयोजित किए जाएंगे। धन के लिए नेटवर्किंग तैयार करना।
1277 किसानों ने खंडवा में प्राकृतिक खेती के लिए पोर्टल पर करवाया पंजीकरण

1277 किसानों ने खंडवा में प्राकृतिक खेती के लिए पोर्टल पर करवाया पंजीकरण

खंडवा जिले में नर्मदा नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए प्राकृतिक खेती करना आवश्यक है. मध्यप्रदेश सरकार ने प्राकृतिक खेती में इच्छुक किसानों के लिए एक वेबसाइट बनाई है. जो भी किसान प्राकृतिक खेती के लिए रजिस्ट्रेशन करना चाहता है वो प्राकृतिक कृषि पद्धति - किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग मध्यप्रदेश  के आधिकारिक वेबसाइट: http://mpnf.mpkrishi.org/ पर जाकर रजिस्ट्रेशन करवा सकते है.

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प्राकृतिक खेती के लिए खंडवा जिले से 1277 किसान, खरगोन से 2052, बड़वानी जिले से 2130 किसान प्राकृतिक खेती के लिए आगे आए. 1223 कृषि अधिकारी, कर्मचारी व किसानों को प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए शामिल किया गया है.

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करोड़ों रुपए बचेंगे कीटनाशक, खाद के कम इस्तमाल से

जैसा कि हम सब जानते है की आज - कल खेती में खाद और कीटनाशकों का इस्तमाल होता है. खाद और कीटनाशक खरीदने के लिए रुपए भी लगते है. कृषि अधिकारियों के मुताबिक ये लगभग 9000-9500 रुपए प्रति हेक्टेयर खाद के लिए और 4000-5000 कीटनाशक के लिए लगते है. यदि दोनों को मिलाया जाए तो ये लगभग 1400-1500 रुपए होते है. यही पूरे जिले का मिलाए तो करोड़ों होते है. वहीं यदि इसका इस्तमाल कम कर दिया जाए तो करोड़ों का फायदा होगा.

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कितने किसानों ने कौन - कौन जिले से पंजीकरण करवाया है

इस योजना में बहुत से किसानों ने अपना सहयोग दिखाया है. जैसे- इंदौर से 1567, बुरहानपुर से 684, खरगोन से 2052, बड़वानी से 2130, खंडवा से 1277, धार से 836, आलीराजपुर से 1389, झाबुआ से 958. कुल मिलाकर - 10893 किसानों ने प्राकृतिक खेती के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया.  

देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा, 30 फीसदी जमीन पर नेचुरल फार्मिंग की व्यवस्था

देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा, 30 फीसदी जमीन पर नेचुरल फार्मिंग की व्यवस्था

भारत में किसानों का रुझान प्राकृतिक खेती (प्राकृतिक कृषि पद्धति) से धीरे धीरे हटते जा रहा है। सरकार किसानों का ध्यान जैविक खेती की ओर बढ़ा रही है। जैविक खेती करने के लिए सरकार नई नई योजनाएं लागू कर रही है। 

और सरकार के इन प्रयासों का असर भी किसानों पर हुआ है। किसानों का ध्यान धीरे-धीरे जैविक खेती की ओर जा रहा है। 

ऐसे में सरकार खेती को नुकसान पहुंचाए बिना, भारत में 2030 तक जैविक खेती का रकबा 30 फ़ीसदी तक बढ़ सकता है। जो कि फिलहाल में केवल 15% ही है। लेकिन 2020 तक 30 फीसदी जमीन पर जैविक खेती करने का अनुमान लगाया जा रहा है।

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भारत सरकार पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए किसानों को जैविक खेती की ओर ले जा रही है। हमारे देश में जैविक खेती का रकबा 15% है जिसे 30% करने की तैयारी की जा रही है। 

इसके साथ ही अनुमान लगाया जा रहा है कि जैविक खेती करने से उत्पादन में कमी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। और अगर किसी कारणवश ऐसा हो जाता है तो इसकी भरपाई उर्वरक सब्सिडी में कमी से की जाएगी। 

ऐसे में भारत में खाद्य समस्या को लेकर धीरे-धीरे जैविक खेती का विस्तार किया जाएगा। भारत के मध्य प्रदेश राजस्थान और उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में कोल खेती का जैविक खेती के रूप में 6 फ़ीसदी तक बढ़ाया जा सकता है।

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भारत में खाद्य उत्पादन बढ़ रहा है :

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में यह कार्य श्रीलंका से सबक लेते हुए किया जाएगा क्योंकि श्रीलंका में उर्वरक के इस्तेमाल को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया था जिसके कारण श्रीलंका में खाद्य संकट पैदा हो गया। 

क्योंकि देश का खाद्य उत्पादन पिछले कई वर्षों में 3% से अधिक की दर से बढ़ रहा है इसके साथ ही जनसंख्या वृद्धि दर 1.5% से भी कम है ऐसे में खाद्य की घरेलू मांग में भी कमी आ रही है।

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कुल उत्पादन का कितना निर्यात :

अगर रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करना बंद हो जाएगा तो हमारे देश में खाद्य संकट पैदा हो सकता है जिससे खाद उत्पादन में कमी आती है। लेकिन भारत उत्पादन कम होने पर धीरे-धीरे आगे बढ़ने की स्थिति में है। 

जानकारी के मुताबिक भारत में खेती के कुल उत्पादन का 6 से 7 फ़ीसदी तक निर्यात किया जाता है। खाद्यान्नों की वापस शॉपिंग करने की नीति के कारण देश खाद्य संकट और कीमतों के झटके से बच सकता है। 

क्योंकि गंगा नदी के किनारे स्थित खेतों में पूरे देश में रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। लेकिन हमारा देश अभी उस स्थिति तक नहीं पहुंच पाया है जहां वह बफर स्टॉकिंग और खरीद व्यवस्था को छोड़ सके।

प्राकृतिक खेती और मसालों का उत्पादन कर एक किसान बना करोड़पति

प्राकृतिक खेती और मसालों का उत्पादन कर एक किसान बना करोड़पति

राधेश्याम परिहार जो कि आगर मालवा जिले में रहते है, ये अपने प्रदेश में प्राकृतिक खेती करने में पहले स्थान पर है. मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें ये उपाधि दी है. राधेश्याम ने 12 वर्षो से खेती छोड़कर मसाला और औषधि की जैविक खेती कर रहे है. इन्हे कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया है, जैसे- कृषक सम्राट, धरती मित्र, कृषक भूषण और इनके कार्य को राज्य स्तरीय सराहना देने के लिए इन्हें जैव विविधता पर 2021-22 का राज्य स्तरीय प्रथम पुरस्कार भी दिया गया है.

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ये रसायनिक खेती से ज्यादा प्राकृतिक खेती में विश्वास रखते थे. जिस वजह से इन्होंने रसायनिक खेती का विरोध किया. जिसकी वजह से उनके पिता ने उनको एक एकड़ जमीन जमीन देकर उन्हें अलग कर लिया. जिसके बाद राधेश्याम ने मसाला और औषधि में खेती शुरू की और मेहनत करके अपना ब्रांड बनाया और उसे तमाम ऑनलाइन साइट्स पर उपलब्ध करवाया और बेचना शुरू किया. पहले मिट्टी की जांच कराई, ज्यादातर कमियों को दूर किया और फिर इतनी मेहनत करने के बाद वो सफल हो गए. अभी के समय राधेश्याम किसान नही है अब वो कारोबारी बन गए है. अभी के समय सालाना टर्नओवर जैविक खेती के उत्पादों का एक करोड़ 80 लाख रुपए है.

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प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी देने के लिए राधेश्याम जी ने फार्म हाउस में पाठशाला शुरू की. इनसे प्रभावित होकर 10 जिलों के 1200 से अधिक किसानों ने प्राकृतिक खेती करना शुरू किया और काफी मुनाफा भी कमा रहे है. फार्म में फूड प्रोसेसिंग इकाई, दुर्लभ वनस्पतियों, रासायनिक खेती से होने वाले नुकसान, जीव-जंतुओं की प्राकृतिक खेती में भूमिका और उनका योगदान जैसे विषयों पर समय-समय पर नि:शुल्क संगोष्ठी की जाती है.

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परंपरागत खेती में मुनाफा न होने के कारण राधेश्याम ने कृषि मेलो और कृषि विश्वविद्यालयों में जाकर समझा कि मसाला एवं औषधि की खेती करके अधिक मुनाफा कैसे कमाए. फिर उन्होंने पारंपरिक खेती में कम ध्यान दिया और मसाला और औषधि की खेती शुरू कर दी. जब देखा कि मसाला और औषधि की खेती में ज्यादा मुनाफा मिल रहा है तो उन्होंने पारंपरिक खेती बंद कर इसी राह में चल पड़े और आज अच्छा मुनाफा कमा रहे है. यदि मसाले की खेती करनी है तो उसके लिए रेतीली दोमट वाली मिट्टी की जरूरत है. साथ ही उस जमीन में पानी की बरसात के पानी का भराव न होना चाहिए नही तो फसल खराब हो सकती है. इसी वजह से राधेश्याम साल का 1 करोड़ 80 लाख रुपए कमाते है.
गो-पालकों के लिए अच्छी खबर, देसी गाय खरीदने पर इस राज्य में मिलेंगे 25000 रुपए

गो-पालकों के लिए अच्छी खबर, देसी गाय खरीदने पर इस राज्य में मिलेंगे 25000 रुपए

चंडीगढ़। हरियाणा से गोपालकों के लिए एक अच्छी खबर आ रही है। हरियाणा सरकार ने एक देसी गाय खरीदने पर किसान को 25000 रुपए की सब्सिडी देने की घोषणा की है। 

प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सबसे बड़ा फैसला लिया गया है। हरियाणा सरकार के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने एक देसी गाय की खरीद पर किसान को 25 हजार रुपए देने का फैसला लिया है। 

साथ ही किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए जीवामृत का घोल तैयार करने के लिए चार बड़े ड्रम निःशुल्क दिए जाएंगे। हरियाणा राज्य इस तरह की घोषणा करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।

पीएम की मुहिम को सफल बनाने का प्रयास

- हरियाणा सरकार द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नेचुरल फार्मिंग वाली मुहिम को सफल बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इससे जहरीले केमिकल वाली खेती पर अंकुश लग सके।

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50 हजार एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने का लक्ष्य

- मनोहरलाल खट्टर सरकार ने प्रदेश की 50 हजार एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा गया है। इस योजना के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए प्रत्येक ब्लॉक में 'खेत प्रदर्शनी' कार्यक्रम लगाए जाएंगे, 

जिससे दूसरे किसान भी जहरीली खेती करने से तौबा करें और जैविक खेती की ओर रुख करें। प्राकृतिक खेती से किसानों की आमदनी में इजाफा होगा और लोगों का स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा।

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इस तरह किया गया है एलान

- हरियाणा के करनाल स्थित डॉ. मंगलसैन ऑडिटोरियम में प्राकृतिक खेती पर राज्यस्तरीय समीक्षा बैठक का आयोजन किया गया। 

बैठक में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि पोर्टल पर रजिस्टर्ड 2 से 5 एकड़ भूमि वाले किसानों को स्वेच्छा से प्राकृतिक खेती अपनाने की अपील की गई है। 

ऐसे सभी किसानों को देसी गाय खरीदने के लिए 50 प्रतिशत सब्सिडी देने का प्रावधान तय किया गया है। सीएम ने कृषि वैज्ञानिकों से सीधा संवाद किया और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को जागरूक करने की बात कही। और जिम्मेदार अधिकारियों को इस संबंध में आवश्यक निर्देश भी दिए। ------ लोकेन्द्र नरवार

प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए अब यूपी में होगा बोर्ड का गठन

प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए अब यूपी में होगा बोर्ड का गठन

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए अब यूपी में बोर्ड का गठन करने की बात कही। सीएम योगी का मानना है कि धरती की रक्षा के लिए प्राकृतिक खेती अपनानी होगी। शीघ्र ही यूपी में इसके बोर्ड के गठन की प्रक्रिया शुरू होगी। उन्होंने कहा कि यूपी में सबसे अच्छा जल संसाधन के साथ-साथ सबसे अच्छी उर्वरा भूमि है। पूरे देश का 12 फीसदी भूभाग यूपी में है। पूरे देश में यूपी 20 फीसदी कृषि उत्पादन करता है।

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लखनऊ में विश्व बैंक एवं एमएसएमई के तत्वावधान में हुई बैठक में सीएम योगी ने कहा कि ऋषि और कृषि एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। गोवंश आधार था। अब फिर से उसी ओर जाना होगा। कम लागत में केवल प्राकृतिक खेती ही किसानों की आमदनी कई गुना बढ़ा सकती है। यदि प्राकृतिक खेती के बढ़ावा मिले तो स्थिति काफी बेहतर हो सकती है। देश में कृषि पहले नम्बर पर है। और एमएसएमई दूसरे नम्बर पर है। आज प्रदेश में 90 लाख एमएसएमई इकाइयां उपलब्ध हैं। यदि दोनों में एक-दूसरे के साथ बेहतर तालमेल हो जाए तो काफी बेहतर परिणाम आ सकते हैं।

इन स्थानों पर अभियान की शुरुआत हो चुकी है

- यूपी में गंगा के दोनों तटों पर पांच किमी तक खास तौर पर तटवर्ती 27 और बुंदेलखंड के 7 यानी कुल 34 जिलों में प्राकृतिक खेती के लिए अभियान शुरु हो चुका है। जल्दी ही पूरे प्रदेश में इसका विस्तार किया जाएगा।

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पीएम मोदी देश को चाहते हैं विषमुक्त

- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चाहते हैं कि पूरा देश विषमुक्त हो जाए। इस अभियान में राज्य सरकारें भी पीएम की मंशा के अनुरूप काम कर रहीं हैं। और लगातार प्रदेश सरकारों की ओर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किया जा रहा है।

किसानों को जागरूक करने के लिए होंगी किसान गोष्ठी

- प्राकृतिक खेती के बारे में किसानों को जागरूक करने के लिए किसान गोष्ठियों का आयोजन किया जाएगा। जिसमें किसानों को प्राकृतिक खेती के फायदे बताए जाएंगे। जल्दी ही इस पर काम शुरू हो जाएगा। 

 ------- लोकेन्द्र नरवार

प्राकृतिक खेती ही सबसे श्रेयस्कर : 'सूरत मॉडल'

प्राकृतिक खेती ही सबसे श्रेयस्कर : 'सूरत मॉडल'

प्राकृतिक खेती का सूरत मॉडल

गुजरात के सूरत में प्राकृतिक खेती के विषय पर एक सम्मलेन का आयोजन हुआ, जिसको विडियो कान्फरेंसिंग के द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संबोधित करते हुए 'सूरत मॉडल' से सीख लेने को कहा. प्रधानमन्त्री मोदी ने कहा कि "हर पंचायत के 75 किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने में सूरत की सफलता पूरे देश के लिए एक मिसाल बनने जा रही है।" “आजादी के 75 साल के निमित्त, देश ने ऐसे अनेक लक्ष्यों पर काम करना शुरू किया है, जो आने वाले समय में बड़े बदलावों का आधार बनेंगे। अमृतकाल में देश की गति–प्रगति का आधार सबका प्रयास की वो भावना है, जो हमारी इस विकास यात्रा का नेतृत्व कर रही है।" “जब आप प्राकृतिक खेती करते हैं तो आप धरती माता की सेवा करते हैं, मिट्टी की क्वालिटी, उसकी उत्पादकता की रक्षा करते हैं। जब आप प्राकृतिक खेती करते हैं, तो आप प्रकृति और पर्यावरण की सेवा करते हैं। जब आप प्राकृतिक खेती से जुड़ते हैं, तो आपको गौमाता की सेवा का सौभाग्य भी मिलता है।” आखिर प्रधानमंत्री क्यों प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रहे हैं. सूरत के हर पंचायत से 75 किसानों को इस पद्धति से खेती करने के लिए चुना गया है. वर्तमान में 550 से अधिक पंचायतों के 40 हजार से ज्यादा किसान प्राकृतिक कृषि को अपना चुके हैं.

क्या है प्राकृतिक खेती (Natural Farming) ?

प्राकृतिक खेती प्राचीन परंपरागत खेती है. यह भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है. इसमें रासायनिक कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता है. प्रकृति में पाए जाने वाले तत्वों से ही खेती की जाती है. उन्हीं को खेती में कीटनाशक के रूप में काम में लिया जाता है. कीटनाशकों के रूप में गोबर की खाद, कम्पोस्ट, जीवाणु खाद, फ़सल अवशेष और प्रकृति में उपलब्ध खनिज जैसे- रॉक फास्फेट, जिप्सम आदि द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं. प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक द्वारा फ़सल को हानिकारक जीवाणुओं से बचाया जाता है.

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क्यों है प्राकृतिक खेती की आवश्यकता ?

खेती में हानीकारक कीटनाशकों के उपयोग के कारन लगातार हानी देखने को मिल रहा है. वही खेती की लागत भी बढ़ रही है. रासायनिक खेती से जमीन के प्रकृति में बदलाव हो रहा है. रासायनिक खेती के उत्पादन के प्रयोग से नित्य नई बिमारीयों से लोग ग्रसित हो रहे हैं. प्राकृतिक खेती से उपजाये खाने पीने की चीजों में खनिज तत्वों, जैसे जिंक व आयरन की मात्रा अधिक पाई जाती है, जो मानव शारीर के लिए लाभदायक होता है. रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से जहाँ खाद्य पदार्थ अपनी गुणवत्ता खो देती हैं वहीं इसका सेवन हानिकारक होता है. मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम होती जाती है. भारत खाद्य पदार्थों के मामले में आत्मनिर्भर हो गया है, लेकिन अगर इन समस्याओं का समाधान नहीं निकाला जायेगा,तो भविष्य में खाद्य सुरक्षा कमजोर हो सकती है.

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भारत की भौगोलिक विविधता के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों में मिट्टी और मौसम भी अलग अलग है. इसी के कारण परंपरागत खेती भी भिन्न भिन्न प्रकार से किये जाते हैं. प्रकृति के अनुकूल खेती से हम मिट्टी, पानी, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को संरक्षित कर सकेंगे. इसके प्रचार प्रसार के लिए प्राप्त अनुभवों को किसानों तक ले जाने की आवश्यकता है. इसमे हमारे कृषि वैज्ञानिक और अनुसंधानकर्ता बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसकी चर्चा करते हुये कहा कि गंगा नदी की सफाई के लिए चल रहे नमामि गंगे कार्यक्रम के साथ प्राकृतिक खेती को भी जोड़ा गया है. इसके तहत नदी के दोनों किनारे प्राकृतिक खेती के लिए पांच किलोमीटर का गलियारा बनाया जा रहा है. केंद्र और राज्य सरकारों के स्तर पर परंपरागत खेती को बढ़ावा देने के लिए अधिक सक्रियता की आवश्यकता है.
Natural Farming: प्राकृतिक खेती में छिपे जल-जंगल-जमीन संग इंसान की सेहत से जुड़े इतने सारे राज

Natural Farming: प्राकृतिक खेती में छिपे जल-जंगल-जमीन संग इंसान की सेहत से जुड़े इतने सारे राज

जीरो बजट खेती की दीवानी क्यों हुई दुनिया? नुकसान के बाद दुनिया लाभ देख हैरान ! नीति आयोग ने किया गुणगान

भूमण्डलीय ऊष्मीकरण या आम भाषा में ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming) से हासिल नतीजों के कारण पर्यावरण संरक्षण (Environmental protection), संतुलन व संवर्धन के प्रति संवेदनशील हुई दुनिया में नेट ज़ीरो एमिशन (net zero emission) यानी शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए देश नैचुरल फार्मिंग (Natural Farming) यानी प्राकृतिक खेती का रुख कर रहे हैं। प्राकृतिक खेती क्या है? इसमें क्या करना पड़ता है? क्या प्राकृतिक खेती बहुत महंगी है? जानिये इन सवालों के जवाब।

खेत और किसान की जरूरत

इसके लिए यह समझना होगा कि, किसी खेत या किसान के लिए सबसे अधिक जरूरी चीज क्या है? उत्तर है खुराक और स्वास्थ्य देखभाल।मतलब, यदि किसी खेत के लिए जरूरी खुराक यानी उसके पोषक तत्व और पादप संरक्षण सामग्री का प्रबंध प्राकृतिक तरीके से किया जाए, तो उसे ही प्राकृतिक खेती (Natural Farming) कहते हैं।

प्राकृतिक खेती क्या है?

प्राकृतिक खेती, प्रकृति के द्वारा स्वयं के विस्तार के लिए किए जाने वाले प्रबंधों का मानवीय अध्ययन है। इसमें कृषि विज्ञान ने किसानी में उन तरीकों कोे अपनाना श्रेष्यकर समझा है, जिसे प्रकृति खुद अपने संवर्धन के लिए करती है। प्राकृतिक खेती में किसी रासायनिक पदार्धों के अमानक प्रयोग के बजाए, प्रकृति आधारित संवर्धन के तरीके अपनाए जाते हैं। इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) या एकीकृत कृषि प्रणाली, प्राकृतिक खेती का वह तरीका है, जिसकी मदद से प्रकृति के साथ, प्राकृतिक तरीके से खेती किसानी कर किसान कृषि आय में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकता है।


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प्राकृतिक संसाधनों के प्रति देशों की सभ्यता का प्रमाण तय करने वाले नेट ज़ीरो एमिशन (net zero emission) यानी शुद्ध शून्य उत्सर्जन अलार्म, के कारण देशों और उनसे जुड़े किसानों को कृषि के तरीकों में बदलाव करना होगा। COP26 summit, Glasgow, में भारत ने 2070 तक, अपने नेट ज़ीरो एमिशन को शून्य करने का वादा किया है। इसी प्रयास के तहत भारत में केंद्र एवं राज्य सरकार, इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) को अपनाने के लिए किसानों को प्रेरित कर रही हैं। प्राकृतिक खेती में सिंचाई, सलाह, संसाधन के प्रबंध के लिए किसानों को प्रोत्साहन योजनाओं के जरिए लाभान्वित किया जा रहा है।


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प्राकृतिक खेती के लाभ

प्राकृतिक खेती के लाभों की यदि बात करें, तो इसमें घरेलू संसाधनों से आवश्यक पोषक तत्व और पादप संरक्षण सामग्री तैयार की जा सकती है। किसान इस प्रकृति के साथ वाली किसानी की विधि से कृषि उत्पादन लागत में भारी कटौती कर कृषि उपज से होने वाली साधारण आय को अच्छी-खासी रिटर्न में तब्दील कर सकते हैं। प्राकृतिक खेती से खेत में उर्वरक और अन्य रसायनों की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

प्राकृतिक खेती की जरूरत

एफएओ 2017, खाद्य और कृषि का भविष्य – रुझान और चुनौतियां शीर्षक आधारित रिपोर्ट के अनुसार नीति आयोग (NITI Aayog) ने मानवीय जीवन क्रम से जुड़े कुछ अनुमान, पूर्वानुमान प्रस्तुत किए हैं। नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत जानकारी के अनुसार, विश्व की आबादी वर्ष 2050 तक लगभग 10 अरब तक हो जाने का पूर्वानुमान है। मामूली आर्थिक विकास की स्थिति में, इससे कृषि मांग में वर्ष 2013 की मांग की तुलना में 50% तक की वृद्धि होगी। नीति आयोग ने खाद्य उत्पादन विस्तार और आर्थिक विकास से प्राकृतिक पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव पर चिंता जताई है। बीते कुछ सालों में वन आच्छादन और जैव विविधता में आई उल्लेखनीय कमी पर भी आयोग चिंतित है। रिपोर्ट के अनुसार, उच्च इनपुट, संसाधन प्रधान खेती रीति के कारण बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, पानी की कमी, मृदा क्षरण और ग्रीनहाउस गैस का उच्च स्तरीय उत्सर्जन होने से पर्यावरण संतुलन प्रभावित हुआ है। वर्तमान में बेमौसम पड़ रही तेज गर्मी, सूखा, बाढ़, आंधी-तूफान जैसी व्याथियों के समाधान के लिए कृषि-पारिस्थितिकी, कृषि-वानिकी, जलवायु-स्मार्ट कृषि और संरक्षण कृषि जैसे ‘समग्र’ दृष्टिकोणों पर देश, सरकार एवं किसानों को मिलकर काम करना होगा। खेती किसानी की दिशा में अब एक समन्वित परिवर्तनकारी प्रक्रिया को अपनाने की जरूरत है।

भविष्य की पीढ़ियों का ख्याल

हमें स्वयं के साथ अपनी आने वाली पीढ़ियों का भी यदि ख्याल रखना है, धरती पर यदि भविष्य की पीढ़ी के लिए जीवन की गुंजाइश शेष छोड़ना है तो इसके लिए प्राकृतिक खेती ही सर्वश्रेष्ठ विचार होगा।


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यह वह विधि है, जिसमें कृषि-पारिस्थितिकी के उपयोग के परिणामस्वरूप भावी पीढ़ियों की जरूरतों से समझौता किए बगैर, बेहतर पैदावार हासिल होती है। एफएओ और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने भी प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए तमाम सहयोगी योजनाएं जारी की हैं।

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) के लाभों को 9 भागों में रखा जा सकता है :

1. उपज में सुधार 2. रासायनिक आदान अनुप्रयोग उन्मूलन 3. उत्पादन की कम लागत से आय में वृद्धि 4. बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चितिकरण 5. पानी की कम खपत 6. पर्यावरण संरक्षण 7. मृदा स्वास्थ्य संरक्षण एवं बहाली 8. पशुधन स्थिरता 9.रोजगार सृजन

नो केमिकल फार्मिंग

प्राकृतिक खेती को रासायनमुक्त खेती ( No Chemical Farming) भी कहा जाता है। इसमें केवल प्राकृतिक आदानों का उपयोग किया जाता है। कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र पर आधारित, यह एक विविध कृषि प्रणाली है। इसमें फसलों, पेड़ों और पशुधन एकीकृत रूप से कृषि कार्य में प्रयुक्त होते हैं। इस समन्वित एकीकरण से कार्यात्मक जैव विविधता के सर्वोत्तम उपयोग में किसान को मदद मिलती है।


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प्रकृति आधारित विधि

अपने उद्भव से मौजूद प्रकृति संवर्धन की वह विधि है जिसे मानव ने बाद में पहचान कर अपनी सुविधा के हिसाब से प्राकृतिक खेती का नाम दिया। कृषि की इस प्राचीन पद्धति में भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखा जाता है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक कीटनाशक का उपयोग वर्जित है। जो तत्व प्रकृति में पाए जाते है, उन्हीं को खेती में कीटनाशक के रूप में अपनाया जाता है। एक तरह से चींटी, चीटे, केंचुए जैसे जीव इस खेती की सफलता का मुख्य आधार होते हैं। जिस तरह प्रकृति बगैर मशीन, फावड़े के अपना संवर्धन करती है ठीक उसी युक्ति का प्रयोग प्राकृतिक खेती में किया जाता है।

ये चार सिद्धांत प्राकृतिक खेती के आधार

प्राकृतिक कृषि के सीधे-साधे चार सिद्धांत हैं, जो किसी को भी आसानी से समझ में आ सकते हैं। ये चार सिद्धांत हैं:
  • हल का उपयोग नहीं, खेत पर जुताई-निंदाई नहीं, बिलकुल प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की तरह की जाने वाली इस खेती में जुताई, निराई की जरूरत नहीं होती।
  • किसी तरह का कोई रासायनिक उर्वरक या फिर पहले से तैयार की हुई खाद का उपयोग नहीं
  • हल या शाक को नुकसान पहुंचाने वाले किसी औजार द्वारा कोई निंदाई, गुड़ाई नहीं
  • रसायनों पर तो किसी तरह की कोई निर्भरता बिलकुल नहीं।

जीरो बजट खेती (Zero Budget Farming)

अब जिस खेती में निराई गुड़ाई की जरूरत न हो, तो उसे जीरो बजट की खेती ही कहा जा सकता है। प्राकृतिक खेती को ही जीरो बजट खेती भी कहा जाता है। प्राकृतिक खेती में प्रकृति प्रदत्त संसाधनों को लाभकारी बनाने के तरीके निहित हैं। किसी बाहरी कृत्रिम तरीके से निर्मित रासायनिक उत्पाद का उपयोग प्राकृतिक खेती में वर्जित है। जीरो बजट वाली प्राकृतिक खेती में गाय के गोबर एवं गौमूत्र का उपयोग कर भूमि की उर्वरता बढ़ाई जाती है। शून्य उत्पादन लागत की प्राकृतिक खेती पद्धति के लिए अलग से कोई इनपुट खरीदना जरूरी नहीं है। जापानियों द्वारा प्रकाश में लाई गई इस विधि की खेती में पारंपरिक तरीकों के विपरीत केवल 10 प्रतिशत पानी की दरकार होती है।
एकीकृत जैविक खेती से उर्वर होगी धरा : खुशहाल किसान, स्वस्थ होगा इंसान

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जैविक खेती मतलब निर्णय फायदे भरा, ऑर्गेनिक खेती का बढ़ रहा चलन दिन प्रतिदिन डिजिटल होती लाइफ के बीच कृषि में तकनीक एवं रसायन आधारित उपयोग के नुकसान के बाद, किसानों को जैविक खेती (Jaivik Kheti/Organic Farming) के फायदों के बारे में जागरूक कर, इसके उपयोग के लिए प्रेरित किया जा रहा है। यूरिया जैसे रासायनिक विकल्पों के बजाए केंचुआ (Earthworm) एवं सूक्ष्म जीव (microbe) आधारित जैविक खादों के उपयोग के लिए किसान भी प्रेरित हुए हैं। ऑर्गेनिक फार्मिंग या जैविक खेती (Organic Farming/Jaivik Kheti) क्या है, इसे कैसे करते हैं, कौन सा तरीका जैविक खेती के लिए कारगर है। इससे जुड़े लाभ के बारे में जानते हैं मेरी खेती के साथ

जैविक खेती क्या है

जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है जैव आधारित कृषि पद्धति को ही ऑर्गेनिक फार्मिंग (Organic Farming) या फिर जैविक खेती (Jaivik Kheti) के नाम से जाना जाता है।

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सूक्ष्म जीवों पर आधारित इस कृषि व्यवस्था में जैविक माध्यम से की जाने वाली प्राकृतिक व्यवस्था की युक्ति अपनाई जाती है। जिस तरह प्रकृति छोटे-छोटे जीव जंतुओं की मदद से बीजारोपण, पौध संरक्षण, भूमि उर्वरता का काम लेती है उसी महत्व को पहचान कर ऑर्गेनिक खेती (Organic Farming) या फिर जैविक खेती (Jaivik Kheti) का खाका बुना गया है। सोचिये आधुनिक कृषि तरीकों में जिस मट्ठर भूमि को उर्वर बनाने के लिए कई हॉर्स पॉवर वाले ट्रैक्टरों की दरकार होती है, उस भूमि को लिजलिजा केंचुआ (Earthworm) समूह कैसे रेंगकर बगैर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए शांत तरीके से अंकुरण के लायक बना देता है।

जैविक खेती में इनका प्रयोग वर्जित

कृषि की जैविक खेती आधारित विधि में संश्लेषित उर्वरक (synthetic fertilizers) एवं संश्लेषित कीटनाशक (synthetic insecticide) का प्रयोग वर्जित है। जरूरत होने पर इनका नाममात्र मात्रा में प्रयोग किया जाता है। भूमि की उर्वरा शक्ति के संतुलन के लिए जैविक खेती में फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट जैसी युक्तियों को अपनाया जाता है।

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वैश्विक स्तर पर जैविक उत्पादों का बाजार इन दिनों काफी तेजी से अपनी पहचान बना रहा है। अजैविक खेती के भूमि और जनस्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रतिकूल असर के कारण कृषक अब स्वयं भी “जैविक खेती” (Organic farming) के तरीके को अपना रहे हैं। जैविक खेती के राष्ट्रीय केंद्र, राष्ट्रीय जैविक एवं प्राकृतिक खेती केंद्र (National Centre for Organic and Natural Farming - NCONF) की देखरेख में भारतीय “जैविक खेती” का विकास हो रहा है। इस विधि के विकास में एकीकृत जैविक खेती खासी मददगार है।

एकीकृत जैविक खेती (Integrated organic farming)

अंतर्राष्ट्रीय जैविक नियंत्रण संगठन (The International Organization for Biological and Integrated Control) या आईओबीसी (IOBC), यूएनआई 11233-2009 (UNI 11233: 2009) यूरोपीय मानक ने एकीकृत खेती को एक कृषि प्रणाली माना है। किसानी की यह वह प्रणाली है जिसमें उच्च गुणवत्ता से पूर्ण जैविक भोजन, चारा, फाइबर आदि का उत्पादन होता है। इसके साथ ही मिट्टी, पानी, वायु आदि प्राकृतिक विकल्पों के उपयोग से इस प्रणाली में नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन भी संभव है।

एकीकृत जैविक खेती प्रणाली

आईओएफएस (IOFS) यानी इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग सिस्टम (Integrated Organic Farming System/IOFS/आईओएफएस) को हिंदी में एकीकृत जैविक खेती प्रणाली के तौर पर पहचाना जाता है। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने एकीकृत जैविक खेती प्रणाली (आईओएफएस/IOFS) भारतीय कृषि परिप्रेक्ष्य में विकसित की है ।

एकीकृत जैविक खेती आज की अनिवार्यता

कृषि के समग्र दृष्टिकोण वाली एकीकृत जैविक खेती (Integrated organic farming) से भूमि की उत्पादकता में स्थायी रूप से वृद्धि होती है। धरती के प्रत्येक जीव के मंगल की कामना करने वाले भारत देश के लिए एकीकृत जैविक खेती (Integrated organic farming) का विकल्प नया नहीं है, हालांकि इंडिया में तब्दील होते फार्मर्स ने कम समय में ज्यादा लाभ कमाने के चक्कर में कुछ समय के लिए इस बेशकीमती पुस्तैनी रीति की किसानी को बिसरा जरूर दिया।

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प्रकति प्रदत्त गौधन से अलंकृत भारत में गाय के गोबर एवं गौमूत्र एवं भैंस, बकरी, भेड़ के गोबर, लेंड़ी, लीद आधारित किसानी का यह पुराना तरीका सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध चलन के कारण स्मृतियों में कैद होकर रह गया।

एकीकृत जैविक खेती क्या है

एकीकृत जैविक खेती का अर्थ खेत में उपलब्ध खेती किसानी के विकल्पों का पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना सर्वोत्तम उपयोग कर उपभोग की वस्तुएं निर्मित करने से है। इसमें पशुधन जैसे गाय-भैंस, भेड़-बकरी, फसल का आपसी समन्यवय एक दूसरे के लिए खाद, चारा, पानी का प्रबंध करने में मददगार होता हैं। एक तरह से यह प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का प्रकृति के विस्तार में सहयोगी किसानी का तरीका है। मतलब पशुधन से जहां जैविक खाद आदि का प्रबंध होता है, वहीं खेत से मानव एवं पशुओं के लिए अनिवार्य पोषक खाद्य पदार्थों की प्राप्ति होती है।

पैदावार के साथ बढ़ी मुसीबतें

कृषि भूमि पर रसायनिक पदार्थों के धड़ल्ले से हुए उपयोग के कारण अनाज का उत्पादन ज्यादा जरूर हुआ लेकिन इसके बुरे परिणाम के रूप में मिट्टी और इंसान की सेहत भी प्रभावित हुई।

कृत्रिम खेती के नुकसान

मौसमी चक्र के विपरीत कम समय में फसल की पैदावार से लेकर उसके भंडारण में उपयोग किए जाने वाले रासायनिक पदार्थों के कारण जल, जंगल, जमीन के साथ मानव के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ने के वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध हैं। रासायनिक खादों के अमानक उपयोग से जहां भूमि की उर्वरता प्रभावित हो रही है, वहीं रासायनिक खाद की उपज से निर्मित खाद्य पदार्थों के सेवन से शारीरिक विन्यास क्रम पर भी बुरा असर देखा गया है।

जैविक खेती का विकल्प

सिंथेटिक खाद के निर्माण एवं उसके उपयोग के कारण पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहे कुप्रभावों के मद्देनजर, जैविक खेती को अपनाना सख्त अनिवार्य हो गया है।

बाजार में अच्छी है मांग

इंटरनेशनल मार्केट में जैविक उत्पाद की डिमांड एवं दाम भी इस प्रणाली की खेती के पक्षधर है। देश के किसान बड़ी संख्या में एकीकृत जैविक खेती का तरीका अपना रहे हैं। खास तौर पर देश के उत्तर पूर्वी राज्यों में इस विधि से किसानी की जा रही है।

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एकीकृत जैविक खेती के लाभ

एकीकृत जैविक खेती से मृदा का अच्छा स्वास्थ्य बरकरार रहता है एवं इसकी उर्वरता में वृद्धि होती जाती है। सब्जियों और फलों संबंधी बीमारियों को कम करने में भी इससे मदद मिलती है।

इस प्रणाली की खेती से उच्च गुणवत्ता के जैविक उत्पादों का निर्माण संभव है।

मिट्टी की उर्वरता और खेती के लिए अधिक उपजाऊ भूमि बढ़ाने के अवसर भी इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग में निहित हैं। फसल पैदावार के दौरान कीट एवं रोग प्रबंधन में जैविक खेती के जैविक उपचार तरीकों के प्रयोग के कारण कीटनाशकों का चलन कम होगा। अंत में कहा जा सकता है कि, एकीकृत जैविक खेती से उर्वर होगी धरा, खुशहाल होगा किसान, स्वस्थ होगा इंसान।

प्राकृतिक खेती के साथ देसी गाय पालने वाले किसानों को 26000 दे रही है सरकार

प्राकृतिक खेती के साथ देसी गाय पालने वाले किसानों को 26000 दे रही है सरकार

भोपाल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को बढ़ावा देने के लिए पूरे देश में मुहिम छेड़ दी है। कई राज्यों में पीएम की इस मुहिम को आगे बढाने के लिए तेजी से काम किया जा रहा है। इसी क्रम में मध्यप्रदेश सरकार ने एक अहम फैसला लिया है। इस फैसले से प्रदेश के 26000 किसानों को फायदा मिलेगा। प्राकृतिक खेती के साथ-साथ देसी गाय पालने वाले मध्यप्रदेश के 26000 किसानों को प्रतिमाह 900 रु की आर्थिक मदद मिलेगी। नेचुरल फार्मिंग योजना को बढ़ावा देने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने सबसे अच्छी पहल की है।

पहले चरण के लिए जारी हुई एडवाइजरी

- प्राकृतिक खेती के साथ-साथ देसी गाय पालने पर मध्यप्रदेश से 26000 किसानों की आर्थिक मदद करेगी। इस योजना को सफल बनाने के लिए पहले चरण की 28 करोड़ 08 लाख रु खर्च करने की मंजूरी मिल चुकी है।

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5200 गांव के किसानों को मिलेगा लाभ

- सरकार की इस योजना में प्रदेश के 26000 किसानों तक लाभ पहुंचेगा। इसके लिए प्रदेश के 5200 गांवों को इस योजना में शामिल किया जाएगा। सरकार की मंत्री-परिषद की बैठक में निर्णय लिया गया है कि प्राकृतिक खेती के साथ एक देसी गाय पालने वाले पशुपालक को अनुदान के रूप में 26000 रूपए दिए जाएंगे। योजना में 52 जिले के 5200 गांवों के किसानों को जोड़ा जाएगा। प्रत्येक जिले से 100 गांव होंगे।

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योजना में शामिल किसानों को दी जाएगी ट्रेनिंग

- मध्यप्रदेश सरकार ने इस योजना के अंतर्गत प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को ट्रेनिंग देने की योजना बनाई गई है। प्राधिक्षण में शामिल होने वाले प्रत्येक किसान को 400 प्रति दिन का खर्चा मिलेगा। जिसके लिए सरकार ने 39 करोड़ 50 लाख रु अलग से वहन करने की बात कही है। साथ ही प्राकृतिक कृषि किट लेने वाले किसानों को 75 फीसदी छूट का प्रावधान है और मास्टर ट्रेनर को 1000 रु प्रतिदिन मिलेंगे।
Natural Farming: प्राकृतिक खेती के लिए ये है मोदी सरकार का प्लान

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ग्राम प्रधानों के लिए आयोजित होंगे सत्र 15 लाख किसान को मिलेगी खास ट्रेनिंग 20 लाख नेशनल फील्ड स्कूल खोले जाएंगे

हरित क्रांति के लिए अपनाए गए रासायनिक खेती के उपायों से पर्यावरण पर पड़ रहे कुप्रभाव को रोकने के लिए भारत सरकार ने नैचुरल फार्मिंग (Natural Farming) यानी  
प्राकृतिक खेती की दिशा में कदम बढ़ाया है। परंपरागत खेती करने वाले भारत के किसानों के बीच हरित क्रांति मिशन के तहत गेहूं और धान की अधिक से अधिक पैदावार हासिल करने की होड़ के कारण भारतीय कृषि के पारंपरिक मूल्यों की भी जमकर अनदेखी हुई। नतीजतन, भारत के किसान बाजरा, ज्वार, कोदू, कुटकी, मोटे चावल जैसी फसलों के प्रति उदासीन होते गए।

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पिछले कई दशकों से भारत के किसानों का रुझान धान और गेहूं की फसलों पर केंद्रित होने से खेतों की उर्वरता भी प्रभावित हुई है। खेत में सालों से लगातार एक ही तरह के रसायनों के प्रयोग के कारण मृदा शक्ति में कमी आई है। धान की फसल के कारण कई प्रदेशों के भूजल स्तर में भी गिरावट दर्ज की गई है।

केंद्रीय मंत्री आशान्वित

भारत के केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने प्राकृतिक कृषि (Natural Farming) की मदद से भारतीय कृषि जगत को नई ऊंचाइयां मिलने के साथ ही मृदा संरक्षण में भी मदद प्राप्त होने की आशा व्यक्त की है। केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय कृषि जगत के विकास के लिए कृत संकल्पित हैं। पीएम मोदी ने किसानों को हमेशा प्रेरित किया है। कृषि मंत्री तोमर ने किसानों से कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक पद्धति को अमल में लाकर परंपरागत प्राकृतिक खेती से होने वाले लाभों को प्राप्त करने की अपील की है। उन्होंने बताया कि, कृषि एवं कृषक हित में सरकार ने प्राकृतिक खेती के लिए एक अभियान शुरू किया है, इससे जुड़कर किसान भारतीय कृषि को नई पहचान दे सकते हैं।

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कृषि मंत्री तोमर के मुताबिक, आजादी का अमृत महोत्सव मनाते समय कृषि क्षेत्र के विकास के लिए सरकार की योजनाओं की चर्चा होना स्वाभाविक एवं जरूरी है। भारत विश्व का एक मात्र ऐसा देश है जहां की लगभग तीन चौथाई आबादी कृषि और इससे संबद्ध व्यवस्था से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़ी हुई है। भारत की अर्थव्यवस्था में भी कृषि का अति महत्वपूर्ण योगदान है। कृषि से खाद्यान्न और कच्ची सामग्री के साथ ही भारत के बड़े बेरोजगार वर्ग को रोजगार भी मिलता है। केंद्रीय कृषि मंत्री के मुताबिक, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते आठ साल में किसान एवं किसानी हित से जुड़ी अहम समस्याओं पर गंभीर चिंतन कर उनके समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं। कृषि मंत्री के अनुसार प्रत्येक बजट में अब एग्रीकल्चर सेक्टर के विकास के लिए पर्याप्त राशि का आवंटन किया जा रहा है। उन्होंने कृषि से जुड़ी कई लाभकारी योजनाओं का भी जिक्र किया। कृषि मंत्री तोमर ने उम्मीद जताई है कि, हरियाणा, गुजरात आंध्रप्रदेश और हिमाचल सहित कुछ राज्यों के किसानों की ही तरह अन्य राज्यों, जिलों एवं ग्रामों के अधिक से अधिक किसान भी अब प्राकृतिक खेती का विकल्प अपनाएंगे। प्राकृतिक तरीके से खेती करने के लाभों के बारे में किसानों को सरकारी स्तर पर जागरूक किया जा रहा है।

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प्राकृतिक खेती के लाभ

केंद्रीय कृषि मंत्री ने बताया कि, प्राकृतिक खेती किसानी का सुगम तरीका है। अल्प लागत की यह किसानी तरकीब किसानों की आय बढ़ाने में मददगार साबित हुई है। मृदा संरक्षण में भी प्राकृतिक खेती की उपयोगिता सर्वविदित है। गौरतलब है कि, पिछले साल गुजरात में आयोजित एक सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के किसानों से भारत की धरा को रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के छिड़काव से मुक्त कराने के लिए किसानों से सहयोग की अपील की थी।

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गंभीर हैं पीएम

प्रधानमंत्री केमिकल और फर्टिलाइजर आधारित आधुनिक किसानी से मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभावों से चिंतित नजर आते हैं। पीएम मोदी का मानना है कि, प्राकृतिक खेती से देश के उन 80 प्रतिशत किसानों को भी लाभ मिल सकेगा, जिनके पास दो हेक्टेयर से भी कम जमीन है। पीएम हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली केमिकल और फर्टिलाइजर आधारित किसानी विधि पर चिंता जता चुके हैं। इस पद्धति से मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ रहे हानिकारक प्रभावों के कारण उन्होंने खेती के अन्य विकल्पों पर गंभीरता से योजना बनाने कृषि वैज्ञानिकों, सलाहकारों को निर्देशित किया है।

प्राकृतिक खेती का बढ़ता दायरा

केंद्र सरकार के प्रयासों से परंपरागत कृषि विकास योजना की उपयोजना के तहत चार लाख हेक्टेयर भूमि क्षेत्र को प्राकृतिक खेती के दायरे में शामिल कर लिया गया है।

जापान से जुड़ी अवधारणा

पेड़, पौधों का विकास वैसे तो प्राकृ़तिक रूप से सतत एवं दीर्घकालीन प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो धरती के विकास के साथ सतत जारी है। हालांकि इन प्राकृतिक तरीकों को पहचान कर जापान के किसान दार्शनिक मासानोबू फुकुओका (Masanobu Fukuoka)ने प्राकृतिक खेती की अवधारणा विकसित की है। उन्होंने साल 1975 में अपने शोध ग्रंथ में प्राकृतिक खेती के तरीकों पर विस्तार से प्रकाश डाला था। पद्मश्री से सुशोभित विदर्भ क्षेत्र में अमरावती के किसान सुभाष पालेकर ने 1990 के दशक में अपने खेत पर प्राकृतिक खेती का प्रयोग किया था। इस दौर में भयावह सूखे का सामना करने वाले विदर्भ क्षेत्र में पालेकर को प्राकृतिक खेती से कई लाभकारी परिणाम भी मिले थे।

पानी की बचत ही बचत

प्राकृतिक खेती का सबसे ज्यादा लाभ पानी की बचत का होगा। फसल की सिंचाई के लिए पानी की कमी का सामना करने वाले किसानों के लिए प्राकृतिक खेती एक तरह से फायदे का सौदा है। नैचुरल फार्मिंग विधि में खेत पर पौधों को पानी की नहीं बल्कि नमी की जरूरत होती है। इस प्रणाली से किसानी करने वाले किसान को पहली दफा इस रीति से किसानी करने पर प्रथम वर्ष 50 फीसदी तक पानी की बचत हो जाती है। अध्ययन के मुताबिक इस बचत में साल दर साल वृद्धि होती जाती है। पहले साल हुई 50 प्रतिशत पानी की बचत बढ़कर तीसरे साल के दौरान 70 फीसदी तक दर्ज की गई है। इतना ही नहीं बल्कि प्राकृतिक खेती की मदद से किसान एक साल में तीन फसलें भी खेत पर उगा सकता है।

सरकारी प्रोत्साहन योजनाएं

एनडीए गवर्नमेंट ने भारतीय कृषि व्यवस्था में सुधार के लिए व्यापक कदम उठाए हैं। किसानों की आर्थिक दशा सुधारने के लिए भी सरकार कई सुविधाएं जारी कर रही है।

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किसान सम्मान निधि, फसल बीमा योजना और न्यूनतम समर्थन मूल्य वृद्धि आदि वह निर्णय हैं जिससे सरकार कृषि एवं कृषक हित को साधने प्रयासरत है।

इतना लक्ष्य निर्धारित

केंद्र सरकार ने भारत में कुल 75,000 हेक्टेयर भूमि को प्राकृतिक विधि की खेती के दायरे में लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

लक्ष्य साधने जतन

किसानों हेतु प्राकृतिक विधि से खेती करने के लिए सरकार ने व्यापक योजना बनाई है। इसके तहत देश के 15 लाख किसानों को नैचुरल फार्मिंग के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। नैचुरल फार्मिंग (Natural Farming) यानी प्राकृतिक खेती के प्रशिक्षण के लिए देश में 20 लाख नेशनल फील्ड स्कूल खोलने की दिशा में द्रुत गति से कार्य जारी है।

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नैचुरल फार्मिंग अपनाने के लिए देश के 30 हजार ग्राम प्रधानों के लिए 750 प्रशिक्षण सत्रों के आयोजन का भी लक्ष्य निर्धारित किया गया है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों से अपील की है कि, वे प्राकृतिक खेती (Natural Farming) मिशन में सहयोग प्रदान कर भारतीय कृषि जगत को नई ऊंचाई और आयाम प्रदान करें।